राजविंदर कौर उर्फ कारला दीदी बताती हैं कि कुछ साल पहले किसी कारण से मैं हताश हो गई थी. मन बहुत विचलित हो गया था जिसके चलते में श्मशान में गई थी. वहां मैंने देखा कि एक व्यक्ति का अंतिम संस्कार करने के लिए कुछ लोग आए थे. मगर पूरा अंतिम संस्कार किए बिना ही चले गए. तब मेरे मन में विचार आया कि कुछ लोग तो ऐसे हैं जिनको मरने के बाद भी मुक्ति नसीब नहीं होती, उनके लिये यहां भजन-कीर्तन जैसे कार्यक्रम करते हैं
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