करीब 110 साल से कहीं ज्यादा पहले डॉ. भीमराव आंबेडकर ने भी स्कूल में भेदभाव और छूआछूत का सामना किया था. उन्होंने लिखा कि छुआछूत के चलते वो दिनभर पानी नहीं पी पाते थे. उन्हें प्यासा रहना पड़ता था. अब इतने समय बाद राजस्थान के स्कूल में जो कुछ हुआ, उसने फिर ये साबित कर दिया कि तमाम सुधारों के बाद भी समाज अपनी कुत्सिक मानसिकता से निकल नहीं पाया.
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